होली की पौराणिक कथाएँ

यह तो प्राय सभो को पता होगा की होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है।  प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे।  वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे।  परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा।  होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी।  परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया।  होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।

तो आइये हम आपको यह कथा और एक और कथा के बारे मे बताते जो शायद ही आपने पहले सुनी हो –

https://worldhistries.com/2020/adhyatam-gyan/%e0%a4%a6%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%8b%e0%a4%b7%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%80%e0%a4%9b%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%9c%e0%a4%be-%e0%a4%b8/

1 प्रहलाद और होलिका की कथा (Story of Holi in Hindi)

होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है।
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए।
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा। हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा। अन्त में थक हार कर वह निराश हो चुका था तभी उसे अपनी बहन होलिका की याद आई होलिका को ब्रहम देव से अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसको वरदान था की वो आग में नहीं जलती थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।

होलिका ने नगर के बीचो बीच एक ऊँचा टीला बनवाकर उसमे आग लगवा दी और बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से  आग में जा बैठी। प्रभु-कृपा से  होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई।

होलिका को ब्रह्म से वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि मे न जल सके परन्तु उसको वह वरदान स्वयं की रक्षा और मानव जाति के कल्याण के लिए प्राप्त था परन्तु उसने उसका प्रयोग प्रभु भक्त पर किया तो वह उसमे खुद ही जलकर भस्म हो गई और आज तक जल रही है।

तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार लिया वह खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर और हिरण्यकश्यप को अपनी गोद मे लिटाकर अपने पैने नाखूनो से  हिरण्यकश्यप का पेट चीर कर उस अत्याचारी को मार डाला। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है। पहली कहानी हम बता चुके है, दूसरीशिव और पार्वती की है।  हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी।  शिवजी को बडा क्रत आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी।        उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया।  फिर शिवजी ने पार्वती को देखा।  पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने       उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।  होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

पूजा विधि (Holi Puja Vidhi in Hindi)
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन (रंग वाली होली के दिन) प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण-पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए। घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से आयु की वृ्द्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।

हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। भद्रा, जो पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में व्याप्त होती है, के समय होलिका पूजा और होलिका दहन नहीं करना चाहिये। सभी शुभ कार्य भद्रा में वर्जित हैं।

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये –

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्यौहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वञ्चित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.