जगत् प्रसिद्ध ‘लुकमान हकीम’ को कौन नही जानता; उसके नाम से सब परिचित है। लुकमान अपने समय का एक प्रसिद्ध हकीम हो गुजरा है। यह प्रत्येक बीमारी की चिकित्सा करने मे सिद्धहस्त था। ऐसा कोई भी रोगी न था जो इसके इलाज करने से स्वस्थ न हुआ हो। इसी गुण से उसकी चारों तरफ धूम मची हुई थी। कहते है वह दवाइयों और यूनानी चिकित्सा सम्बन्धी पुस्तको के सत्तर ऊँट भर कर हर समय अपने साथ रखता था।
एक दिन की बात है। यह अपने सत्तर ऊँटो के साथ कही जा रहा था। मार्ग मे एक अनोखा रंग-ढ़ग का व्यक्ति मिला। लुकमान ने उससे पूछा – ‘तुम कौन हो?’ उसने उत्तर दिया – ‘मै मृत्यु हूँ।’
लुकमान ने पूछा – तुम्हारा काम क्या है और कहाँ जा रहे हो ?
उस अजनबी मनुष्य ने उत्तर दिया कि ‘लोगो के प्राण हरना मेरा काम है और आज अमुक व्यक्ति के प्राण लेने जा रहा हूँ।’
लुकमान ने आश्चर्यचकित होकर पूछा – किस तरह से उसके प्राण निकालोगे ?
उसने उत्तर दिया कि ‘उस व्यक्ति के पेट मे इस तरह का दर्द पैदा करूँगा जिससे वह स्वस्थ न होने पायेगा।’ इतना कहकर वह अदृश्य हो गया।
इधर लुकमान भी उस व्यक्ति के पास जा पहुँचा। जिसके विषय मे मृत्युदेव ने बताया था। निश्चित समय पर उस व्यक्ति के पेट मे दर्द होने लगा। बढ़िया से बढ़िया दवाईयाँ लुकमान हकीम ने उसे देनी आरम्भ की परन्तु तनिक भी उस पर प्रभाव न पड़ा।
अन्त मे दो चार घण्टे दारूण पीड़ा से कराह-कराहकर उस रोगी ने जान दे दी। अब तो हकीम साहब हड़बड़ा उठे। दिल मे सोचने लगे कि जब मृत्यु अनिवार्य ही है तथा कोई औषध अपना गुण तक नही दिखा पाती तो मुझे किसी की चिकित्सा करने का क्या लाभ ? ये पुस्तके व औषधियाँ ऊँटो पर लादे लादे फिरना व्यर्थ ही है। अतः सब सामान लेकर एक नदी के किनारे पहुँचा और दृढ़ संकल्प कर लिया कि सभी सामान इसी नदी मे डूबो देने योग्य है।
इतने मे वही निराले रंग-ढ़ग का व्यक्ति आ प्रकट हुआ और लुकमान का हाथ पकड़कर कहने लगा – हकीम जी! आपको यह क्या करने की सूझी है?
हकीम ने निराशापूर्ण उत्तर दिया कि ‘जब इनसे किसी का लाभ नही होता और न ही इसका असर ही प्रतीत होता है तो इसको रखने से क्या लाभ? अस्तु, यह सब कुछ फैकने योग्य है।’
उस व्यक्ति ने समझाते हुए कहा – ‘यह बात नही है कि औषधियो मे असर न हो। ईश्वर ने जो असर जिस चीज मे रखा है वह अपना प्रभाव जरूर दर्शाती है परन्तु उस समय जिस समय उन्हे अपना प्रभाव दिखाने का अवसर मिले।’ उसी क्षण जितनी औषधिया हकीम ने रोगी को दी थी। सब की सब उस व्यक्ति ने हाथ पर रख कर लुकमान को दिखा दी और कहने लगा कि ‘जिस समय रोगी के गले मे यह दवा उतरती थी तो मै उसके गले मे बैठ कर सब की सब दवाई ले जाता था। अब आप ही बताइये! जब रोगी के पेट मे कोई औषध गई ही नही तो उसका प्रभाव किस प्रकार पड़ता?’ इस प्रकार उसे समझा बुझाकर उसे वापस भेज दिया।
तब तो लुकमान हकीम अच्छी तरह जान गया कि यह सब जीते जी के ही सामान और उपचार है। जब इंसान का समय पूरा हो जाता है। तो उस समय इस काल के मुख से मनुष्य को कोई नही बचा सकता। इसी प्रकार जब लुकमान हकीम का समय पूरा हुआ तो मृत्यु ने उसे भी आ दबाया। तो उसने अन्तिम शब्द ये कहे –
।। शेअर ।।
मरते मरते कह गया लुकमान सा दानाँ हकीम ।
दर हकीकत मौत की यारो! दवा कुछ भी नही ।।
दृष्टान्त का तात्पर्य यह है कि मौत से आज तक न कोई बचा है और न ही कोई भविष्य मे बच पायेगा क्योकि काल के आगे किसी की दाल नही गलती। जैसे निम्न दोहा है –
।। दोहा ।।
ऐसी करनी कर चलो, तुम हँसो जग रोये ।।
तात्पर्य यह है कि जब हम संसार मे आये थे तो हमारे आस-पड़ोस माता पिता आदि सभी ने खुशी प्रकट की मिठाई बाटी और हम इस दुनिया मे रोते हुए आए। महापुरूष कहते है कि विपरित इसके हमे अच्छे कर्म करने चाहिए और अपने मालिक को याद करना चाहिए और दूसरो की मदद करनी चाहिए ताकि जब हम इस संसार से विदा हो तो हम हँसते हुए विदा हो और हमारे पीछे रोने के लिए काफिला होना चाहिए ताकि हम अपना नाम दुनिया मे अमर कर सके और अपने उददेश्य की पूर्ति करे।