रूहानी खजाना

प्रत्येक जीव के अन्दर से हर समय अर्थात् चौबीसो घंटे सुरति या तवज्जुह की धारा बाहर को निकलती रहती है, चाहे उसे स्वयं इसका अनुभव हो या ना हो यही सुरती या तवज्जुह की धारा ही मनुष्य के जीवन का सार तत्व, सार शक्ति या रूहानी ताकत है

      यहा अब इस बात पर विचार करना है कि जीव अपनी तवज्जुह की धारा को किस मकसद य़ा मतलब के लिए बाहर फेंकता रहता है? और इस धारा की क्या किमत है? तथा उसे बाहर निकाल कर मनुष्य उसके बदले मे क्या चीज हासिल करता है?
      जिस प्रकार किसी बेसमझ (यानि परख न रखने वाले) मनुष्य को करोड़ो रूपये के मूल्य का हीरा मिल जाए और वह उसके बदले मे साग सब्जियो का ढेर खरीद लाये और इस बात पर खुश हो कि वह जरा से पत्थर के बदले ढेर सारी चीज ले आया है, इसी प्रकार साधारण मनुष्य इस बेहद किमती चीज को खर्च करके उसके बदले मे व्यर्थ और निकम्मी मायावी वस्तुए खरीद करने में मे दिन-रात लगा हुआ है यह तो एक प्रकार से मिसाल देने के लिए कहा गया है, नही तो करोड़ो रूपये तो क्या दुनिया की तमाम दौलत भी इसक  आगे तुच्छ है?
      ज्यो-ज्यो मनुष्य की सुरति की धारा मायावी पदार्थों मे लगती जाती है और उनमे रूचि लेकर काम करती है, त्यो-त्यो ही यह जीव बेहद घाटे का सौदा कर रहा है
      जीव समझता है कि मै संसार मे अच्छे-अच्छे और कीमती पदार्थ जमा कर रहा हूँ  और इस बात पर खुश है कि वह नफा काम कर रहा है, मगर यह सब धोखा है
      सुरति की धारा की किमत और उनके महत्तव को कोई विरला विचारवान, प्रेमीजन और सन्त सतगुरू का सच्चा सेवक ही जान सकता है
      दुनियावी व्यापार या लेन-देन मे हर एक रूपये के बदले मे पूरी पूरी सोलह आने की चीज ली जाती है और रूपया की पूरी कीमत से रत्ती भर कम लेना भी कोई कबूल नही करता इसी प्रकार ही यह समझना चाहिए कि जिस बहुमूल्य शक्ति (सुरति की धारा) को खर्च किया जा रहा है, उसके बदले जो चीज खरीद की जाती है, क्या वह भी उसी मूल्य और महत्तव की है?
      सन्त सतगुरू ही जीवो को इस धोखे और गुमराही से छुड़ाकर असलियत का पारखू बनाना चाहते है, ताकि यह जीव माया को माया और रूहानियत को रूहानियत समझे
      भाव यह की सन्त सतगुरू जीव की सुरति की धारा के इस गलत रूख को बदलना चाहते है और बदल देते है तवज्जुह का रूख जो माया की तरफ झुका हुआ है, उसे वहां से हटाकर वे अपने रूहानी शब्द में लगाते है और उनका यह काम गाड़ी का कांटा बदल लेने की तरह है जिस तरह एक लाईन या पटरी पर चलती हुई गाड़ी का कांटा बदल दिया जाता है तो वही गाड़ी दूसरी लाइन पर आ जाती है और जहां दोनो लाइनो का संगम है या जहाँ से काँटा बदल दिया जाता है, वहाँ से देखने मे तो दोनों लाइनों मे कुछ खास अन्तर या दूरी प्रतीत नही होती, परन्तु आगे चलकर मालूम पड़ता है कि दोनों लाईनो की मजिलों मे किस कदर सैकड़ो मील की दूरी हो गई है
      सन्त सतगुरू का रूहानी शब्द ही जीव की असली और निजी चीज है और इसी के साथ ही जीव का सच्चा नाता या सम्बन्ध है सन्त सतगुरू इसीलिए जीवो का रूख माया से हटाकर रूहानी शब्द और मालिक की भक्ति के साथ जोड़ते है कि यह जीव अपनी असली और निजी चीज का ही लगाव दिल मे रखे
      सन्त सतगुरू के परम पावन उपदेश और मालिक की सुख-स्वरूप भक्ति मे सभी योग, साधन, नियम, धर्म इत्यादि अपने आप आ जाते है इसलिए जिसके दिल मे सन्त सतगुरु की भक्ति और उनका ध्यान आ गया, उसके सभी साधन सिद्ध हो गये सन्त सतगुरु तुम्हे से यही चाहते है कि तुम अपने मन से भक्ति के प्रतिकूल भावों और संस्कारो को बाहर निकाल दो जब तुम इस प्रकार अपने अन्दर की सफाई मे लग जाते हो तो यही सबसे बड़ा योग साधन और सच्चा रूहानी कर्म है इस विशेष समय और खास मौके के अन्दर (अर्थात् मानुष जन्म पाकर) भी यदि सन्त सतगुरू के वचन उपदेश को न माना गया तो फिर यह जीव कब और किस प्रकार मायाव  बन्धनो से मुक्त हो सकेगा?
      जीव के द्वारा किया हुआ उसका एक-एक पल का कर्म भी संस्कार बनता जा रहा है और अन्त मे यही संस्कार एकत्र हो जाने पर जीवन की पूँजी बन जाते है इसलिए जीव को सोच समझकर प्रत्येक कर्म करने चाहिए जिस माया का मुकाबला करने के लिए तुम्हे तैयार किया जा रहा है, उसका विस्तार भी बहुत भारी है वह कई प्रकार के रंग-ढ़ग रचाकर और स्वाग बदल-बदल कर जीवो को भरमाती है इसलिए उसमे काफी होशियार और खबरदार रहने की जरूरत होगी भय-भाव, मान-अपमान, स्तुति-निन्दा, सुख-दुख, रंज-राहत आदि उसकी कई अनेक सूरते है हम कहाँ तक वर्णन करे? इसलिए अपना नफा-नुकसान समझने की कोशिश करे असलियत का अनुभव करो और धोखे तथा फरेब के पंजे से आजाद होकर सच्चाई और असलियत के तलबगार बनो माया और माया के सामान जिन्दगी की गुजारन के साधन मात्र है और जिन्दगी गुजारने के लिए जीव के पास इनका होना जरूरी है सन्तो की तरफ से जीव को इनके इस्तमाल करने की कोई मना नही है, परन्तु असलियत और सच्चाई को ध्यान मे रखते हुए रूहानी तरक्की व रूहानी कमाई मे तवज्जुह को लगाना नितान्त आवश्यक है

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