मनुष्य जिस सांसारिक माया मे आसक्त हो अपने इस क्षणभंगुर शरीर का गर्व करता है तथा अपने सौन्दर्य एवं सुख-ऐश्वर्यमय जीवन को ही सब कुछ लेता है, वह अज्ञानी जीव यह बात नितान्त ही भूल जाता है कि मेरे ऊपर मृत्यु भी आनी है और सभी कुछ यही छोड़ कर खाली हाथ ही मुझे यहाँ से चले जाना है। जो मनुष्य केवल मनुष्य जीवन को ही चिरस्थायी समझ तथा इन नश्वर पदार्थो को सत्य मान एवं देहाभिमान के कारण शुभ कर्मो से वंचित रहते है उनकी मृत्यु के उपरान्त कैसी दशा होती है, उसका चित्रण इस दृष्टान्त मे है-
एक समय बाबा ‘फरीद साहब’ शकका गंज वाले किसी शहर में से गुजर रहे थे कि अकस्मात उनकी दृष्टि एक दुखिया स्त्री पर जा पड़ी। जिसे उसकी मालकिन (जो वेश्या थी) डण्डे से पीट रही थी तथा वह दुःखी स्त्री रोती ह्ई बार बार हाथ जोड़ कर उसके पैरो पर गिर कर क्षमा मांग रही थी कि ‘बीबी जी ! अब इस बार मेरे अपराध को क्षमा कर दो। आगे से ऐसी भूल कभी न होगी।’ परन्तु वह निर्दया जिसे अपने रूप, यौवन एवं धन का मद था, बेचारी के विनय करने तथा क्षमा मंगाने पर भी उस पर लाठी एवं पैरो से प्रहार किये जा रही थी।
यह असह्म दृश्य जब बाबा फरीद जी ने देखा तो उनका हदय करूणा से भर गया। वह उस अबला के दुःख को सहन न कर सके। उन्होंने उस वेश्या के पास जाकर उस स्त्री को मारने का कारण पूछा। पहले तो अपने यौवन के अहंकार मे चूर हुई उसने बाबा जी की ओर तनिक ध्यान भी न दिया परन्तु फरीद जी के बार बार पूछने पर वह अकड़कर बोली, ‘साई जी ! क्या पूछते हो ? यह ऐसी नालायक है कि इसको कोई काम भी उचित ढंग से करना नही आता। आज मैने इसको कहा था कि मेरे लिये ऐसा बारीक काजल पीस कर तैयार कर दे जो कि मक्खन से भी ज्यादा नर्म हो। परन्तु इस अक्ल की धनी ने ऐसा काजल बनाया कि जब से मैने लगाया है उसी समय से अब तक मेरी आँखो मे चुभन हो रही है जिससे मै दर्द से कराह रही हूं।
बाबा फरीद जी ने कहा – माता! इस बार तो आप इसे हमारे कहने से माफ कर दो। आगे से यह उचित ढंग से काम करेगी। फरीद जी के कहने पर उस अभिमानिनी ने उसे छोड़ दिया। तत्पश्चात बाबाजी कही आगे चल दिये। कुछ कालोपरान्त एक बार बाबा जी किसी मरघट के पास से गुजर रहे थे। उन्होंने एक मनुष्य का शव पड़ा देखा जिस पर कि पक्षी बैठे उसकी आँखो को अपनी तीक्ष्ण चोचों से फोडे जा रहे थे। जब बाबा फरीद जी ने यह मार्मिक दृश्य देखा तो कहने लगे – ऐ मेरे मालिक ! ऐसा कौन भाग्यहीन मनुष्य है जिसको कि मृत्यु के उपरान्त भी कब्र के भीतर स्थान न मिल सका? तब उस समय देववाणी हुई – ऐ मेरे प्यारे फरीद ! यह उसी घमण्ड मे चूर हुई वेश्या का शव है जो एक बार बारीक काजल के न पीसने पर अपनी नौकरानी को कोडो से पीट रही थी।
फरीद जी ने जब यह आकाशवाणी सुनी तो वही सिर पकड़ कर बैठ गए और सोचने लगे कि – हे प्रभो ! तेरी कैसी अनुपम लीला है कि जिसे जीवित होने पर इतना गर्व हो तो उसकी मरणोपरान्त ऐसी दुर्दशा? तब यकायक कह उठे
अर्थात जिस प्राणी को अपने जीवनकाल मे इतना अभिमान हो कि काजल की धार भी उसकी आँखो मे चुभती हो परन्तु मरने के बाद उसकी आँखो पर पक्षी बैठ कर उसे नोचें और वह प्राणी अपने ऊपर बैठे पक्षियो को हटा भी न सके। ओफ ! यह सब मै अपनी आँखो से क्या देख रहा हूँ। कवि गंगाराम ने सत्य ही तो कहा है
।। कविता ।।
हाथियो के दाँतों के खिलौने बने भाँत भाँत ।
बाघन की खाल राजे- राणे मन भाई है ।।
पशुओ की खाल के अनेक सुन्दर जोडे बने ।
बकरे की खाल साथ पानी भर लाई है ।।
मृगन की खाल को ओढत है जती-जोगी ।
गेंडन की खाल सो तो शिव मन भाई है ।।
कहे कवि ‘गंगा राम’ गुरू के भजन बिन ।
मानुष की खाल किसी काम मे न आई है ।।
तात्पर्य यह है कि हमारे मनुष्य शरीर का भविष्य जिसके लिए हम हजारो रूपये करते है तथा उस पर इतना गर्व करते है कि अपने तुल्य किसी को कुछ समझते ही नही, मृत्यु के पश्चात बिना भक्ति भजन किये उस शरीर की क्या हालत होती है, इसका पूर्ण परिचय पाठको ने इस दृष्टान्त से ज्ञात कर ही लिया होगा कि अन्त मे सिवाय दो मुटठी राख बनने के किसी काम मे नही आता जब कि अन्य पशु योनिया मृत देह से भी दूसरो को लाभ पहुँचा जाती है।
इतना सब कुछ आँखो से देखते हुए भी मनुष्य का मन मालिक के भजन सुमिरण की ओर न लगे तो यह कितनी भारी भूल है। कितना आश्चर्य एवं अफसोस का यह विषय है। तभी तो परमात्मा का भजन न करने वाले मनुष्यो से पशु भी अच्छे कहे जाते है जिनसे जीते जी तो मनुष्य काम लेता ही है परन्तु मरने के बाद भी उसकी खाल काम मे ली जाती है। अतएव प्रत्येक प्राणी का यह कर्त्तव्य है कि जीवनकाल मे ही अपने मालिके कुल इष्टदेव पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ सदगुरूदेव जी महाराज द्वारा प्रदत्त पवित्र नाम का अभ्यास व संत्सग त्रवण करते हुए उनके वचनानुसार जीवन यापन करे जिससे यह मानव भी सफल हो और परलोक भी उज्जवल बन जाये। यही हम सबका संसार मे आने का उददेश्य है।