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जौहरी को इनाम के रूप मे मिला दण्ड

प्रस्तुत कहानी मे दर्शाया गया है कि एक हीरे परखने वाले जौहरी ने एक लाल की उचित किमत लगाकर राजा का दिल जीत लिया परन्तु मुख्यमंत्री ने जौहरी को इनाम की अपेक्षा दण्ड रूप मे थप्पड़ लगाने का आदेश दिया। पूरा प्रंसग इस प्रकार पढ़िये – 

      एक बार किसी राजा के दरबार मे एक सौदागर अति मूल्यवान् लाल लेकर आया। जिसे देखकर राजा ने जोैहरियो को बुला कर लाल को परखने व उसका मूल्यांकन करने का आदेश दिया। आज्ञा पाकर सब रत्न पारखुओ ने लाल को ध्यान से देखा, लेकिन कोई भी जौहरी उसका वास्तविक मूल्य न बता पाया। जब उन जौहरियो मे से कोई भी उस लाल का पूरा मूल्य न बता सका तब राजा ने अपने मंत्री से कहा – ‘क्या हमारे राज्य मे ये ही जौहरी है जो कि एक लाल की किमत भी न आंक सके?’
      तब मन्त्री ने कहा – हां, महाराज! एक अति सुजान और अनुभवी जौहरी और भी है यदि आपका आदेश हो तो उसे बुला लिया जाये।
      तब देश-सम्राट ने उस अनुभवी जौहरी को बुलवाया। उसके आने पर वह लाल देकर राजा ने उसे परखने को कहा। लाल को लेकर जौहरी ने उसे बड़े ध्यानपूर्वक देखा पश्चात राजा साहब, दरबारी गण व जौहरियो के समक्ष उसकी किमत निन्यानवे हजार (99,000) बताई। जौहरी द्वारा लाल की निन्यानवे हजार रूपये कीमत सुनकर सब ने हैरानी से पूछा – आपने लाल की कीमत निन्यानवे हजार बताई है, इसका क्या कारण है? क्या इसका मूल्य एक लाख नही हो सकता?
      तब उस समय उस जौहरी ने सबके सामने असली लाल की पहचान करने वाले सब साधन बतलाये तथा उसके विशेष गुण भी प्रकट किये। पश्चात लाल मे अंकित रेखाओ को दिखाते हुए राजा साहब ने कहा – महाराज! यद्यपि इस लाल मे सौ रेखाये अवश्य विद्यमान है लेकिन निन्यानवे रेखाये तो नीचे तक खिंची हुई स्पष्ट दिखाई दे रही है लेकिन एक रेखा आधी मिट गई है, इसी कारण इस लाल का मूल्य को स्वीकार कर लिया। राजा साहब व मन्त्री मण्डल उस जौहरी की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करने लगे। देश सम्राट ने वह लाल खरीदकर उसका मूल्य व्यापारी को दे दिया। लाल खरीदने के बाद राजा साहब ने उस निपुण जौहरी की योग्यता से प्रसन्न हो उसे कुछ पुरस्कार देना चाहा। इसलिए राजा ने इनाम के विषय मे मंत्रियो व राज कर्मचारियो से पूछा। सबने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उस जौहरी को इनाम देने के विचार प्रकट किये परन्तु राजा साहब को किसी का बताया हुआ पुरस्कार उचित प्रतीत न हुआ। तब उन्होंने अपने एक पुराने वृद्ध मंत्री को जोकि उस समय घर पर था, बुलवाया। 
      यह प्रधानमंत्री अत्यन्त व्यवहार कुशल संन्तो का सेवक और सत्संगी था। जिसे सत्संग मे जाने से सत असत् का ज्ञान हो चुका था। इसलिए वह संसार व संसार के पदार्थों को मिथ्या व नाशवान् समझकर अपने समय को मालिक के भजनाभ्यास व सत्संग मे लगाता था। मानव जन्म व श्वास जिनको शास्रो ने लालों से भी अधिक मूल्यवान् बताया है उसकी कीमत इस मंत्री के मन मे पूरा पूरा ज्ञान था, अभिप्राय सांसारिक कार्य व्यवहार करने के साथ साथ इसकी परमार्थ व भक्ति के शुभ कार्यो की ओर अत्यधिक रूचि थी।   
      इस मंत्री के आने पर राजा साहब ने सब वृत्तान्त कह सुनाया और उस जौहरी को इनाम देने के लिए उचित सलाह चाही। मंत्री ने समस्त वृत्तान्त ज्ञात कर लेने पर यह निर्णय दिया कि महाराज! यदि आप मेरी राय लेना चाहते है तो मेरी यही सम्मति है कि इस जौहरी के मुँह पर सौ थप्पड़ लगाये जाये। 
      राजा साहब व समस्त दरबारी गण व मंत्री द्वारा दिये गए परामर्श को सुनकर विस्मित हुए और दिल मे सोचने लगे कि यह ऐसा क्यो कर रहे है तब राजा साहब ने स्वयं मन्त्री से पूछा – मन्त्री जी! हमने तो इस जौहरी को पुरस्कार देने की योजना बनाई थी और आप उसे उल्टा दण्ड देने को कह रहे है। इसका क्या कारण है? इसने एक तो योग्यता का कार्य किया है अर्थात् जिस लाल को अन्य सभी जौहरी परखने मे असमर्थ रहे उसी लाल का मूल्यांकन इसने किया। अब इसे राज दरबार मे बुलाकर इनाम देने की अपेक्षा अपमानित किया जाए तो देखने सुनने वाले हमारे प्रति क्या कहेगे? 
      मन्त्री ने प्रत्युत्तर मे कहा – महाराज! सन्तो के वचन अनुसार अधिक अफसोस का विषय भी तो यही है। कि इतना बुद्धिमान होने पर भी इस जौहरी ने पूरी आयु पत्थरों की परख मे गँवा दी है। अगर यह अपनी बुद्धि को, विचारों व समय को सांसारिक कार्य व्यवहार के साथ-साथ ईश्वर की और लगाकर आत्मा का साक्षात्कार करता, जीव व ब्रह्म के भेद को समझने की कोशिश करता तो आज यह जौहरी की अपेक्षा क्या कुछ बन गया होता। जितना समय इसने हीरे-लालो को परखने मे लगाया व कितने परिश्रम से इसने यह गुण सिखा, अगर उसके साथ अथक प्रयत्न व साधन भगवद् अराधन हेतु करता तो आज इसे उच्च कोटि के भक्तों मे स्थान प्राप्त हो सकता था। यह ज्ञान भक्ति के उच्च शिखर तक पहुँच जाता। जिस मनुष्य को उस आदि पुरुष ने मनुष्य शरीर व अदभुत प्रतिभा प्रदान की और वह व्यक्ति उसका यथार्थ रूप मे सदुपयोग न कर केवल शारीरिक इच्छाओ की पूर्ति हेतु नाशवान् पदार्थो एवं सुखभोगों मे ही विनष्ट कर दे तो फिर यह उस परम पिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त निधि का दुरूपयोग ही करना है। सो अब आप ही महाराज! निर्णय किजिये कि यह जौहरी पुरस्कार का अधिकारी है अथवा दण्ड का भागी?
      मन्त्री द्वारा इस प्रकार के उच्च स्तर वाले भक्ति भाव से मिश्रित यथार्थ विचार सुन कर मन्त्री मण्डल व देश सम्राट चकित रह गये। सब ने इस वास्तविक बातों से आध्यात्म ज्ञान प्राप्त किया। तथा सभी मन्त्री की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। 

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