कथाकारो और शास्रो के अनुसार यह बात उस समय की है । जब बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक भगवान श्री रामचन्द्र जी अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए राक्षस राजा रावण से युद्ध करने के लिए जा रहे थे । तो बीच मे एक विशाल सागर पड़ता है । तो रास्ता बनाने के लिए भगवान राम, वानर और भालू की विशाल सेना के साथ समुद्र पर एक पुल बनाना शुरू करते हैं जो उन्हें लंका से जोड़ता था । भगवान राम पुल के निर्माण के प्रति अपनी सेना के जुनून, समर्पण और ऊर्जा के स्तर को देखने के लिए विजयी थे । अचानक भगवान राम जी देखते है कि एक छोटी सी गिलहरी अपने मुँह में कंकड़ उठाकर पुल के पास रख रही है । वह बार-बार इस कार्य को बड़ी सहजता के साथ कर रही थी ।
भगवान राम को काफी देर एक ही दिशा में निहारते हुए देख लक्ष्मण ने पूछा – ‘भय्या आप क्या देख रहे है।’ भगवान राम ने इशारा करते हुए कहा कि ‘वो देखो लक्ष्मण एक गिलहरी बार-बार अपने मुँह मे कंकड़ भर समुन्द्र के किनारे रख जाती है । वह काफी देर से यही कार्य कर रही है । लक्ष्मण बोले – ‘प्रभु वह क्रिड़ा कर रही है और कुछ नही ।’ भगवान राम ने कहा, ‘नही लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो।’ चलो आओ ! उस गिलहरी से ही पूछ लेते है, कि वह क्या कर रही है ?
दोनों भाई उस गिलहरी के निकट गए । भगवान राम ने गिलहरी से पूछा कि ‘तुम क्या कर रही हो ?’ गिलहरी ने उत्तर दिया कि कुछ नही प्रभु बस इस पुण्य कार्य मे थोड़ा सा योगदान दे रही हूँ । भगवान राम को उत्तर देकर गिलहरी फिर से अपने कार्य मे जुट गई । तो भगवान राम उसे टोकते हुए बोले, ‘तुम्हारे इस कार्य से क्या होगा ?’
गिलहरी ने कहा, ‘प्रभु आप सत्य कह रहे है । मै इस सृष्टि की इतनी लघु प्राणी होने के कारण कर भी क्या सकती हूँ । परन्तु प्रभु हरे बड़े कार्य की शुरूआत छोटे से ही होती है । मेरे कार्य का मूंल्याकन जो भी हो, किन्तु प्रभु मै यह कार्य किसी आकांक्षा से नही कर रही । यह कार्य तो राष्ट्र कार्य है, धर्म की अधर्म पर जीत का कार्य है । मनुष्य जितना कार्य कर सके निःस्वार्थ भाव से राष्ट्रहित का कार्य करना चाहिए । भगवान राम गिलहरी की बात सुनकर भाव विभोर हो उठे ।
भगवान राम ने तब सेना को दिखाया कि कैसे गिलहरी द्वारा फेंके गए कंकड़ ने दो शिलाखंडों के बीच संबंधक के रूप में काम किया है. यहां तक कि उसका योगदान भी सेना के अन्य सदस्यों की तरह ही मूल्यवान है ।
भगवान राम ने उस छोटी सी गिलहरी को अपनी हथेली पर बिठा लिया । और उसके शरीर पर प्यार से हाथ फेरने लगे । भगवान राम की अंगुलियो का स्पर्श पाकर गिलहरी की पीठ पर दो धारिया छप गई । जो प्रभु राम के स्नेह के प्रतीक के रूप मे मानी जाती है ।
गिलहरी के प्रयास को स्वीकार करते हुए, भगवान राम ने गिलहरी की पीठ पर हाथ फेरा । तभी से गिलहरी के शरीर पर श्रीराम की अंगुली के निशान रह गए ।