प्रत्येक इन्सान के मन मे हमेशा और हर वक्त ख्याल व विचार आते ही रहते है कभी किसी का ख्याल कभी किसी का विचारो की तरंग हर समय पैदा होती रहती है
ये ख्यालो की धाराएँ हर वक्त मन मे उठती और उभरती है, इन का नतीजा क्या होता है? यह कि उन्ही ख्यालों के मुताबिक इंसान के अन्दर मे ताकत पैदा होती है
यह किस तरह होता है कि जिस तरह की इंसान के ख्यालो की धाराएँ या लहरे होती है वे जब बाहर निकलती है तो वायुमडल मे फैल जाती है और अपने साथ मुताबिकत रखने वाले संस्कारो, विचारो और असरात को तलाश करती है जहाँ कही उनको अपने मुताबिक ख्याल और संस्कार मिल जाते है वहाँ से उन के असर को ग्रहण करके अपने साथ खींच लाती है गोया इस तरह से वे अन्दर ही अन्दर दृढ़ होती रहती है और वही बाद मे उनकी अमली ताकत बन जाती है
गोया जिस तरह की इंसान के ख्यालो की धाराएँ या . लहरे होती है उसी तरह की उसकी जिन्दगी की सूरत बन जाती है हर एक इंसान के जिन्दगी की असली सूरत उसके दृढ़ ख्यालो के आधार पर ही हुआ करती है दुनिया मे कुदरत की जितनी भी रचना नजर आती है, उन मे से हर एक किसी न किसी ख्याल ही की शक्ल सूरत है और जिस कदर भी योनियां है वे भी सब एक न एक ख्याल की अपनी तस्वीरें है
जिस इंसान की जो कुछ भी मौजूदा हालत आज है, वह उसके अपने ही किये हुए दृढ़ विचारो और संस्कारो का नतीजा है अर्थात् दुनिया मे जो कोई भी इंसान इस वक्त मौजुदा सूरत मे सुखी दुखी अमीर गरीब तथा जैसा भी नजर आता है उसकी यह हालत कैसे बनी? धीरे-धीरे कई जन्मो मे काफी अर्सा से जिस किस्म के विचार और संस्कार उस के अपने अन्दर मे ताकत पकड़ते और दृढ़ होते रहे है उन्ही विचारो और संस्कारो ने अमली शक्ल और अखतियार करके या मुजस्सम सूरत धारण करके मौजुदा हालत को पेश किया हुआ है
अब जरा गौर करके या दुनिया की आम हालत पर नजर डाल कर आम जीवों की हालत का अंदाजा किजिए कि उनके अंदर मे किस किस्म के ख्याल दिन-रात दृढ़ होकर ताकत हासिल करते होगे?
क्योकि यह कुदरती उसूल है कि दुनिया मे कोई भी इंसान बगैर किसी मकसद या सहारे के तो कोई भी काम नही करता उसके हर एक काम के पीछे कोई न कोई मकसद रहता है तो फिर सोचा जाये की इस लिहाज से आम इंसान की जिन्दगी की कार्यवाही मे मकसद या आधार क्या है? क्योकि जिस किस्म का मकसद कायम किया हुआ है, जिन्दगी की अमली कार्यवाही और ख्यालो की धाराओ या तंरगो की सूरत भी उसी किस्म की होगी
जरा सोच विचार करके देखो कि इंसान का अपना मन जो विचारो की धारा बाहर फेकता रहता है, वह क्या है गौर करने से मालूम होगा कि अपना मन माया के मसाले से बना हुआ है और इसके कुल विचारो की धारा माया के दायरे क अंदर काम करती है
इंसान का मन क्या है? जिस तरह की पहले ऊपर कहा गया है कि गुजरे हुए अनेको जन्मो में जो जो संस्कार, कर्म और विचार जीव ने जमा किये होते है, उन्ही संस्कारो और कर्मो के आधार पर बने हुए और दृढ़ हुए अच्छे या बुरे ख्यालों के ढेर का नाम ही मन है इसके सिवाय मन की और कोई सूरत नही है यह महज जीव के अपने ही ख्यालो का पुलन्दा या गठड़ी हैं।
यह मन चूंकि जन्म जन्म से माया ही के व्यवहार और संगत मे तथा माया के अधीन होकर ही काम करता रहा है, इसीलिए उसमें काफी वक्त से मायावी ताकत दृढ़ हो चुकी है इसलिए ही उसको माया के मसाला से बना हुआ कहा गया है और उसकी कुल विचारधारा का प्रवाह माया ही के दायरे के अन्दर है, क्योकि काफी अर्सा से मायावी ताकतो के अधीन रहकर माया रूप हो चुका है
अब चूंकि मन की जितनी कार्यवाही अर्थात् उसकी विचारधारा का जो रूख या बहाव है वह समूल ही माया के दायरे के अन्दर है मन की सारी कार्यवाही का नतीजा यह होता है कि रूह पर दिन प्रतिदिन मायावी गिलाफ और ज्यादा चढ़ते जाते है पहले भी कई जन्मो के संस्कारो के जमा हुए असर से रूह पर मायावी गिलाफ काफी चढ़ चुके हुए थे जिन के कारण उस की असली ताकत और रोशनी दब चुकी है अब दिन प्रतिदिन और भी मायावी गिलाफ चढ़ते जाने से जिन से तारीकी या मोह या अज्ञान और ज्यादा तरक्की पकड़ते जाते है और उस से रूह दुखी होती है
गोया जितनी जितनी ख्यालो की धाराएँ या लहरो के दायरे के अन्दर ज्यादा काम करती है उसी कदर रूह ज्यादा दुखी होती है तब क्या इंसान दुखी होने के लिए विचारो की धारा को इस तरह फैलाता है?
इसका उत्तर यह है कि नही – इंसान दुखी होने के लिए अपने ख्यालों की धाराओ को नही फैलाता, बल्कि उसकी खाहिश तो सुख को हासिल करने की है, परन्तु अपने ख्याल का जो मकसद और आदर्श उसने बनाया हुआ है, वह माया की चाह और खाहिश ही दुख और बन्धन देने वाली है जब खाहिश माया ही की है, तब माया तो अपना फल देगी ही मायावी ख्यालो का फल तो यही दुख और बन्धन ही है, इसलिए वह मिलेगा भी सतपुरूषो का कथन है
मेरी मेरी धारि बंधनि बंधिआ।
तरकि सुरगि अवतार माइआ धंधिया ।।
अर्थ – “मेरी-मेरी (ममत्व) की चाह को धारण करने से ही जीव बन्धन में बांधा जाता है और मै- मेरी के कारण ही वह बार बार भले व बुरे कर्मो या संस्कारो के नतीजा के तौर पर स्वर्गो और नरको के चक्कर काटता फिरता है और इसी माया के धन्धे या व्यवहार मे ही बार बार फिरता रहता है इस प्रकार जन्म मरण से आजाद और मुक्त नही हो सकता
इस प्रकार से इस जीव को महज अपने ही ख्यालो और खाहिशों के आधार पर दुख और बन्धन ही बार बार मिलता है यद्यपि सुख की तलब भी है, किन्तु माया में आसक्त होने के कारण कर्म ही दुख और बन्धन को देने वाले करता है इसलिए गोया अपने ही कर्मो के सब दुख मिलता है जब अपने कर्मो के आधार पर दुख मिलता है तो फिर रोना किस बात का है?
यह तो एक माना हुआ कुदरती उसूल है कि बगैर मांगे या चाहे कोई भी चीज कुदरत की तरफ से किसी को नही दी जाती और जब अपनी ही मागी हुई चीज मिलती है तो फिर रोना किस बात का है?
मायावी असबाब और खाहिशो का निचोड़ तो दुख ही है और इसकी चाह से वही मिलेगा क्योकि मायावी असबाब की तासीर सिवाय दुख या बन्धन के और कुछ नही हो सकती जिस चीज की लगन है वही हासिल भी होगी और जिस चीज को मकसद या आदर्श बनाया है, उसी तक ही जाकर पहुँचना भी होगा
अपने ही ख्यालों की दुखभरी तासीर से जीव भला किस तरह बच सकता है जिस तरह अपनी इस्तमाल कि हुई चीजो की भली बुरी तासीर से कोई नही छूट सकता इसी तरह अपने ही ख्यालो के नेक-बद असर की छाया भी इंसान की जिन्दगी पर पड़ना जरूरी है अगर दुख जाहिर होता है तो वह भी अपनी ही खाहिश और इच्छाओ के फल की सूरत मे होता है
।। दोहा।।
मन मोटा मन पातला, मन पानी मन लाय।
जैसी मन की ऊपजै, तैसी ही हवै जाए ।।
अर्थ – ” इंसान का मन मोटा भी है और पतला भी है अर्थात् मन को स्थूल भी बनाया जा सकता है और सूक्ष्म रूप भी बनाया जा सकता है यही पानी का रूप भी है और अग्नि का भी। भाव यह कि शान्त और शीतल भी हो सकता है और आग की सूरत भी बन सकता है। क्योकि जो जो ख्याल या तरगें इंसान के मन मे पैदा होती है वैसी ही उसकी अन्दरूनी और बैरूनी दुनिया बन जाती है ”
जो कुछ मांगा है वही मिला है। माया मागीं तो वह मिल गई और उसके साथ उसके असर भी तो जाहिर होगे ही क्योकि माया की तासीर ही यही है हाँ अगर सुख शान्ति की जरूरत है तो उसको देने वाली चीज मालिक की भक्ति और मालिक का प्रेम है। फकीरो का कथन है
।। शेअर।।
हमा चीजै बका ओ फानी मुयस्सर अन्द बदरगाहश।
चश्मबीना बका खाहन्द फना खाहन्द जाहिलहा।।
अर्थात् कुदरत के कारखाने मे सत् और असत् दोनो प्रकार की वस्तुएँ है। बुद्धिमान पुरूष सत् वस्तु की चाह करते है और अज्ञानी असत् वस्तु की चाह करते है माया मांगी थी और दुःख मिला भक्ति मागी जायेगी तो सुख और शान्ति का फल मिलेगा इसलिए सतपुरूषो ने उपदेश किया है
।। दोहा।।
मिटते सूँ मत प्रीति करि, रहते सूँ करि नेह।
झूठे कूँ तजि दीजिये, साचे में करि गेह।।
अर्थ – माया और मायावी असबाब आरजी जिन्दगी की आरजी गुजरान के समान है यह जल्दी ही हाथों से निकल जाने वाले है इन के साथ दिल की प्रिति नही लगानी चाहिए बल्कि जो दायम और कायम चीज सतगुरू का उपदेश और ध्यान है तथा सत् स्वरूप है, उसी के साथ लिव लगाकर सत् को प्राप्त करना चाहिए।
जिसने अपने अन्दर मे माया की चाह या खाहिश को दृढ़ किया, गोया भक्ति और रूहानियत की तरफ से लापरवाही की। माया का सब प्रपंच क्योंकि नाशवान व आरजी है इसलिए वह हाथ न आवेगी
किन्तु जिसने भक्ति की ख्वाहिश और चाह है, उसके अन्दर मे भक्ति दृढ़ होगी और भक्ति के साथ साथ माया भी उसी के पीछे जायेगी, क्योकि माया भक्ति की दासी है
सत्पुरूषो ने उपदेश किया है
।। दोहा।।
सत समरथ ते राखि मन, करिय जगत को काम।
जगजीवन यह मंत्र है, सदा सुक्ख बिसराम ।।
अर्थ – ” इस दुनिया मे रहकर दुनिया के काम धन्धे और जीवन निर्वाह बेशक करो, परन्तु अपना मन सत् समरथ रूप अपने इष्टदेव मालिक मे लगा कर रखो मन को मायावी धन्धो मे मत अटकाओ। सन्त जगजीवन दास जी उपदेश फरमाते है कि यही दुनिया में हर तरह से सुख शान्ति को पाने का उत्तम मंत्र या तरीका है।”
यह उत्तम मंत्र या तरीका कहाँ से प्राप्त होगा? समय के रूहानी महापुरूष ही उस नाम मंत्र का दान देते है तथा युक्ति समझाते है जो भाग्यशाली जीव उनकी आज्ञा और मौज अनुसार इस की कमाई करते है वे ही दुनिया में रहकर भी सच्चे मालिक की निकटता तथा सच्ची खुशी को पा सकते है
भाव यह है कि इंसान खाह किसी भी हालत मे जिन्दगी गुजरे, अगर अपने मन मे सच्चे मालिक इष्टदेव के ध्यान और भक्ति की लगन को दृढ़ करता है तो मायावी दुख और अशान्ति उस पर अपना असर नही डाल सकती और वह काल और माया के भय-बन्धन से हमेशा मुक्त और आजाद रहेगा।
यही सच्ची शान्ति, सच्ची खुशी और सच्चा सुख हासिल करने का उत्तम उपाय है।