अकबर का जन्म अमरकोट के राजा वीसाल के महल मे 15 अक्टूबर 1542 ई. मे हुआ था। अकबर का बचपन बड़े ही संघर्ष के मध्य व्यतीत हुआ। कई बार तो उन्हें अपनी माता हमीदाबानो तक से अलग हो जाना पड़ा और भाग्य के सहारे जीवित रहना पड़ा लेकिन बाल्यावस्था की मुसीबतो ने उन्हें अत्यन्त निर्भीक और साहसी बना दिया था। उनका मन खेल-कूद, घूड़सवारी, तलवार चलाने, हाथियो की लड़ाई आदि देखने मे अधिक लगता था।
बीस वर्ष की आयु प्राप्त होने तक अकबर ने एक उदार मुगल शासक के रूप में यश प्राप्त कर लिया। मध्यकाल मे यह प्रथा थी कि जो सैनिक युद्ध मे पकड़े जाते थे उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाता था। अकबर ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। शासन के कुछ ही वर्षो बाद उसने तीर्थ-स्थानो की यात्रा करने वाले यात्रियो पर लगाये जाने वाले यात्री को भी उठा लिया। अकबर को अपनी प्रजा के मध्य विभिन्न सम्प्रदायो मे मतभेद पंसद नही था। इसलिए प्रजा मे एकता ओर समानता का भाव उत्पन्न करने की भावना से ही उन्होंने “जजिया-कर” को भी समाप्त कर दिया था। यह कर सभी गैर मुसलमानो को अदा करना पड़ता था।
अकबर धर्म के मामलो मे बहुत उदार थे। अपने राज्य मे उन्होने सभी धर्मो के लोगो को अपना-अपना धर्म पालन करने की पूर्ण स्वंतन्त्रता दे रखी थी। वह देश मे केवल राजनीतिक एकता ही नही स्थापित करना चाहते थे बल्कि सांस्कृतिक एंव धार्मिक सदभाव भी कायम करना चाहते थे। इसी से प्रेरित होकर उन्होने ‘दीन-ए-इलाही’ नामक एक नया धर्म चलाया, जिसमे सभी धर्मो की अच्छी बातो को ग्रहण किया गया था। यह धर्म रुढियों पर आधारित न होकर तर्क पर आधारित था।
उनका दरबार विद्वान और कलाकारो का केन्द्र था। राज्य भाषा फारसी थी। इसी समय फारसी भाषा मे मौलिक रचनाएँ की गई तथा दूसरी भाषाओ के श्रेष्ठ ग्रन्थों का अनुवाद भी फारसी मे किया गया। बहुत से भारतीय तथा विदेशी कवि अकबर के दरबार मे रहते थे। अबुल फजल द्वारा लिखित “आइने-अकबरी” मे अकबर के द्वारा सहायता प्राप्त उनसठ कवियो का उल्लेख है। उस समय की फारसी भाषा की श्रेष्ठ रचनाओ मे अबुल फजल का “अकबरनामा”, आइने अकबरी, निजामुददीन की, “तबकाते अकबरी”, गुलबदन बेगम का “हूमायुँनामा” आदि प्रसिद्ध है। अबुल फैजी भी फारसी के श्रेष्ठ कवि थे।
अकबर का शासन काल हिन्दी पदय का स्वर्ण युग था। इसी समय हिन्दी के उच्च कोटि के काव्य ग्रन्थो की रचना हुई। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तुलसीदास, सूरदास, रहिम, रसखान, बीरबल थे। उस समय की प्रसिद्ध हिन्दी रचनाओ मे ‘रामचरितमानस’ और ‘सूरसागर’ है। कुछ मुसलमान कवियो ने भी हिन्दी मे रचनाएँ की। इसमे रहिम जिसका वास्तविक नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था का नाम सबसे ऊपर है जो फारसी, अरबी, तुर्की तथा संस्कृत भाषा के विद्वान थे। दूसरे मुसलमान हिन्दी कवि रसखान थे। अकबर के दीवाने खास मे नौ रत्नो को विशेष सम्मान प्राप्त था।
अकबर संगीत के अनन्य प्रेमी थे। संगीत को संरक्षण प्रदान करने के कारण उनके समय में संगीत कला की आश्चर्यजनक उन्नति हुई। हिन्दू तथा मुसलमानो का संगीत बनकर एक बन गया था। “आइने अकबरी” मे उनके दरबार के 36 श्रेष्ठ संगीतज्ञो के नाम दिये हुए है। अकबर स्वंय एक अच्छे गायक थे। तानसेन उनके दरबार के श्रेष्ठ गायक थे। तानसेन ने कई नये रागों की सृष्टि की। दूसरे प्रसिद्ध गायक बैजू बावरा थे। ऐसी किंवदंतियाँ है कि बैजू बावरा की तानसेन के साथ संगीत की प्रातियोगिता हुई और उन्होने अपने गायन से तानसेन को परास्त कर दिया। संगीत की दो भिन्न-भिन्न शैलियो को मिलाकर एक करने का तथा भारतीय राष्ट्रीय संगीत को जन्म देने का श्रेय अकबर को ही है।
अकबर ने स्थापत्य कला की भी नई शैली को जन्म दिया। उन्होने आगरा, इलाहाबाद तथा लाहौर मे तीन विशाल किले बनवाए। अकबर के समय की वास्तुकला का सबसे अच्छा नमूना फतेहपुर सीकरी मे निर्मित इमारते है। मुगल स्थापत्य कला का प्रभाव देश की सभी तत्कालीन इमारतो पर पड़ा। अकबर के साम्राज्य मे बड़े-बड़े समृद्ध शाली नगर थे। जिनमे दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सोकरी, अजमेर, लाहौर, मुल्तान, उज्जैन, बुरहानपुर, अहमदाबाद, बनारस, इलाहाबाद, पटना, हुगली, ढाका तथा चटगाँव आदि विशेष प्रसिद्ध है। अकबर को चित्रकारी से बहुत प्रेम था। उनके दरबार मे बहुत से योग्य और कुशल चित्रकार थे।
अकबर ऐसे उल्लेखनीय शासको मे एक है जिन्होंने अपनी राष्ट्रीय भावना धार्मिक सहिष्णुता और निपुण शासन से भारत के इतिहास मे एक विशेष स्थान प्राप्त किया। एक विदेशी आततायी तैमूर और चगेंज खाँ के वंशज थे किन्तु उन्होंने अपने को पूरी तरह भारतीय बना लिया और देश के सर्वागीण विकास के कार्यो मे उसी प्रकार दत्त चित्त होकर लगे रहे जैसे वे मूल रुप से भारतीय हो। भारत का इतिहास उन्हे अकबर महान के रूप मे सदैव याद रखेगा।